आईआईटी रुड़की में आठवें अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का भव्य आयोजन
(ब्योरो – दिलशाद खान।KNEWS18)
आईआईटी रुड़की में शिक्षा, सततता और नैतिक नेतृत्व में रामायण की प्रासंगिकता पर केंद्रित आठवें अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया। इस तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा, विशेष रूप से रामायण के मूल्यों को आधुनिक शिक्षा, समाज और राष्ट्र निर्माण से जोड़ना रहा। सम्मेलन का आयोजन आईआईटी रुड़की एवं श्री रामचरित भवन, अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से किया गया, जिसमें देश-विदेश से विद्वान, संत और रामायण अध्येता शामिल हुए।सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर के. के. पंत ने कहा कि आधुनिक शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका अर्जन नहीं, बल्कि मानवता की सेवा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस के मूल्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। प्रोफेसर पंत ने उल्लेख किया कि आईआईटी रुड़की का कुलगीत भी रामचरितमानस की चौपाई “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” से प्रेरित है, जो समाज सेवा और लोककल्याण की भावना को दर्शाता है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे ज्ञान को विकसित भारत 2047 के निर्माण का माध्यम बनाएं।उद्घाटन सत्र में महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी ने आशीर्वचन देते हुए कहा कि भौतिकता और मोबाइल-प्रधान जीवनशैली के इस युग में रामायण, महाभारत और अन्य शास्त्र चरित्र निर्माण और आंतरिक शांति के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। उन्होंने रामायण को जीवन की संपूर्ण मार्गदर्शिका बताते हुए त्याग, भक्ति, गुरु-भक्ति और सामाजिक समरसता पर बल दिया।इस अवसर पर “गीता शब्द अनुक्रमणिका” तथा सम्मेलन की ई-कार्यवाही का विमोचन भी किया गया, जिन्हें विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी बताया गया। एक भावुक क्षण में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रख्यात संस्कृत विद्वान प्रोफेसर महावीर अग्रवाल को उनके पाँच दशकों के योगदान के लिए मरणोपरांत “रामायण रत्न” पुरस्कार प्रदान किया गया, जिसे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती वीणा अग्रवाल ने ग्रहण किया।सम्मेलन के दौरान महावीर स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश शास्त्री ने रामायण की दार्शनिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला। उन्होंने विद्यालय से उच्च शिक्षा तक भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित पाठ्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया।सम्मेलन में कई विद्वानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को श्री रामचरित भवन रत्न, विभूषण और भूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वहीं समापन सत्र में उत्कृष्ट शोध कार्यों के लिए श्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार भी प्रदान किए गए।वक्ताओं ने सामूहिक रूप से कहा कि रामायण को नैतिकता, सतत विकास और समकालीन चुनौतियों से जोड़ने का यह प्रयास प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।



