September 13, 2025

आईआईटी रुड़की ने विकसित किया दुनिया का पहला एआई मॉडल जो मोदी लिपि को देवनागरी में करता है लिप्यंतरित

📌 रिपोर्ट: Knews18
✍️ [दिलशाद खान/ब्यूरो]

(रुड़की, उत्तराखंड) | 18 जुलाई, 2025
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की ने एक ऐतिहासिक पहल करते हुए मोदी लिपि को देवनागरी में लिप्यंतरित करने के लिए दुनिया का पहला एआई-आधारित मॉडल MoScNet (एमओएससीनेट) विकसित किया है। यह पहल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है, जो डिजिटल इंडिया, भारतजीपीटी और वैश्विक सांस्कृतिक डिजिटलीकरण जैसी पहलों का समर्थन करती है। MoScNet: एआई-संचालित ऐतिहासिक संरक्षण का भविष्य – आईआईटी रुड़की के प्रो. स्पर्श मित्तल के नेतृत्व में विकसित इस मॉडल ने विजन-लैंग्वेज मॉडल (VLM) तकनीक का उपयोग करते हुए ऐतिहासिक दस्तावेजों के लिप्यंतरण को बेहद कुशल बना दिया है। यह मॉडल विशेष रूप से भारत भर में फैली 4 करोड़ से अधिक मोदी लिपि पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में संरक्षित करने में मदद करेगा।

MoDeTrans: ऐतिहासिक डेटासेट की नई मिसाल

इस परियोजना के तहत MoDeTrans (एमओडिट्रांस) नामक डेटासेट तैयार किया गया है, जिसमें तीन ऐतिहासिक युगों—शिवकालीन, पेशवेकालीन एवं अंगलाकालीन—की 2,000+ से अधिक वास्तविक पांडुलिपियों की छवियाँ एवं उनके प्रमाणित देवनागरी लिप्यंतरण शामिल हैं।

छात्रों का योगदान: युवाओं की भूमिका अहम

इस परियोजना में सीओईपी टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (पूर्व में कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे) के छात्र हर्षल और तन्वी, तथा विश्वकर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, पुणे के पूर्व छात्र ओंकार ने महत्वपूर्ण तकनीकी योगदान दिया।आईआईटी रुड़की के निदेशक का वक्तव्य प्रो. कमल किशोर पंत, निदेशक, आईआईटी रुड़की ने कहा:
“यह कार्य दर्शाता है कि कैसे एआई की शक्ति का उपयोग हम न केवल स्वचालन के लिए, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने एवं राष्ट्र निर्माण को गति देने के लिए भी कर सकते हैं। यह विकसित भारत की सच्ची भावना को दर्शाता है।”

ओपन-सोर्स दृष्टिकोण: वैश्विक पहुँच और सहयोग को बढ़ावाइस परियोजना के तहत MoDeTrans डेटासेट और MoScNet मॉडल को हगिंग फेस (Hugging Face) प्लेटफॉर्म पर ओपन-सोर्स किया गया है, जिससे दुनियाभर के शोधकर्ता और तकनीकी समुदाय इस नवाचार का लाभ उठा सकते हैं।

🔗 एक्सेस डेटासेट: MoDeTrans (एमओडिट्रांस)
🔗 एक्सेस मॉडल: MoScNet (एमओएससीनेट)

संस्कृति और तकनीक का संगम इस लिप्यंतरण तकनीक से भूमि अभिलेख, आयुर्वेद ग्रंथ, मध्यकालीन विज्ञान, और सरकारी अभिलेखागार जैसे अति-महत्वपूर्ण दस्तावेजों को संरक्षित किया जा सकेगा। साथ ही, मोदी लिपि विशेषज्ञों की कमी के चलते यह तकनीक एक व्यावहारिक, हल्का और स्केलेबल समाधान प्रदान करती है।

भविष्य की दिशा: वैश्विक और स्थानीय दोनों स्तरों पर उपयोगी – प्रो. मित्तल ने कहा:
“हमारा लक्ष्य भारत के प्राचीन ज्ञान को ओपन-सोर्स और नैतिक एआई टूल्स के ज़रिए जन-जन तक पहुँचाना है। यह केवल एक मॉडल नहीं, बल्कि एक आंदोलन है।”यह तकनीक न केवल भारत में बल्कि अन्य प्राचीन या लुप्तप्राय लिपियों के डिजिटलीकरण के लिए भी एक वैश्विक मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र के SDG 11.4: “विश्व की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत की रक्षा और सुरक्षा के प्रयासों को मज़बूत करना” के अनुरूप है।

 अतीत से भविष्य की ओर सेतु – यह परियोजना आईआईटी रुड़की की प्रतिबद्धता को दर्शाती है – नवाचार, समावेशिता और जिम्मेदार तकनीक के साथ भारत के अतीत को भविष्य से जोड़ने की है ।

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