जब किसी ज्योति का बुझना, सैकड़ों दीयों को धुंधला कर देता है”

(दिलशाद खान)(KNEWS18)
रुड़की | 22 जून — बीएस एम शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष, उत्तराखंड सरकार में पूर्व राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के तेजस्वी पथप्रदर्शक श्रद्धेय मनोहर लाल शर्मा अब हमारे बीच नहीं रहे। शनिवार की दोपहर उनका निवास सन्नाटे और सिसकियों से गुंजायमान था, जब हरिद्वार के सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पहुँचकर शोकाकुल परिवार से मिले और उन्हें ढाँढस बँधाया।
> “शर्मा जी का जाना शिक्षा जगत ही नहीं, पूरे समाज और राजनीति की ऐसी क्षति है जिसे शब्द समेट नहीं सकते,” — त्रिवेंद्र सिंह रावत, सांसद
रावत जी की आँखों में नम झिलमिलाहट थी, मानो वे स्वयं भी किसी प्रिय गुरु को विदा दे रहे हों। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की, साथ ही स्वर्गीय शर्मा जी के सुपुत्र ममतेश कुमार शर्मा और रजनीश कुमार शर्मा का हाथ थामकर कहा, “इस दुख की घड़ी में न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी, बल्कि पूरा समाज आपके साथ है।”
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मौन में डूबा प्रांगण, जहाँ हर ईंट उनकी विरासत सुनाती रही
बीएस एम शिक्षण संस्थान के प्रांगण में सजे पुष्पचक्र मानो शर्मा जी के अथक परिश्रम की ज़ुबानी कहानी कह रहे थे। शिक्षा की उस गम्भीर इमारत में उनकी दूरदृष्टि ने न जाने कितने पैमानों को नया आकार दिया—
गुणवत्ता-प्रथम की नीतियाँ,
ग्रामीण विद्यार्थियों की निःशुल्क छात्रवृत्ति,
और डिजिटल प्रयोगशालाएँ जिन पर आज भी छात्र गर्व करते हैं।
आज जब उनके विशाल कक्ष का दरवाज़ा भरा हुआ था, हर कोने में एक ही प्रश्न गूँज रहा था— “अब इस मशाल को कौन थामेगा?”
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राजनीति से परे—एक शिक्षक की संवेदनशील दृष्टि
राजनीति में शर्मा जी लोकप्रियता की सीढ़ियाँ चढ़े, पर उनकी असली पहचान सादगीभरा शिक्षाविद् और समाजसेवी रही। गाँवों की पगडंडियाँ हों या विश्वविद्यालय के मंच, उन्होंने एक ही बात दोहराई— “हर बच्चा बेहतर अवसर का अधिकारी है।”
आज उनकी अनुपस्थिति ने शिक्षा को नई चुनौती दी है—
1. क्या हम उनकी अपेक्षा के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मानदण्ड बनाए रख पाएँगे?
2. क्या समाज अब भी उन मूल्यों की रक्षा करेगा जो उन्होंने बोए?
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साँझ से पहले बुझ गई वह मशाल
भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए याद किया कि किस तरह शर्मा जी ने प्रशासनिक कुशलता और मानवीय करुणा को संतुलित किया। जिला महामंत्री प्रवीण संधू ने रुंधे गले से कहा, “वे दूरदर्शी थे—वे समझते थे कि शिक्षा ही राष्ट्रनिर्माण की नींव है।”
पवन तोमर, प्रमोद चौधरी, प्रदीप पाल, रामकुमार शर्मा, विनय कुमार शर्मा और अन्य नेताओं ने जिस सम्मिलित स्वर में उन्हें “एक सच्चा जनसेवक” कहा, वहाँ राजनीतिक रंगत नहीं, आत्मीयता बोल रही थी।
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धरोहर का दायित्व—अब समाज के कंधों पर
शर्मा जी के जाते ही प्रश्नों का अनगिन सिलसिला खड़ा हुआ है।
क्या उनकी परिकल्पित नयी शाखाएँ समय पर खुल पाएँगी?
क्या आर्थिक रूप से पिछड़े विद्यार्थियों की सहायता योजनाएँ जारी रहेंगी?
और राजनीति में उनकी सिद्धान्तनिष्ठ शैली को कौन आगे बढ़ाएगा?
इन सवालों के जवाब समाज को ही लिखने हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्पष्ट संदेश दिया— “जो आदर्श शर्मा जी छोड़ गए, उन्हें आगे बढ़ाना ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”
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अश्रुओं से घोषणाएँ नहीं लिखी जा सकतीं—आओ, कुछ कर दिखाएँ
आज जब मनोहर लाल शर्मा की अर्थी पर हर पुष्प एक कथा सुना रहा था, तब उपस्थित जनसमूह ने एक बात महसूस की— मृत्यु देह को हर सकती है, विचार को नहीं।
इसीलिए ज़रूरत है कि हम—
विद्यालयों में शोध और नवाचार को बढ़ावा दें,
“एक भी बच्चा पिछड़ा न रहे” यह संकल्प दुहराएँ,
और राजनीति में पारदर्शिता तथा सेवा-भाव को उनकी तरह जीवित रखें।
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अंतिम प्रार्थना
ईश्वर से कामना है कि वे दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और परिवार को इस रिक्तता से उबरने की शक्ति दें। परंतु हमारी जिम्मेदारी यहाँ खत्म नहीं होती— हमें उस प्रकाश को अपने मन में जीवित रखना होगा जिसे मनोहर लाल शर्मा ने जलाया था। अगर हम ऐसा कर पाए, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं, उनके स्वप्नों को साकार करने की वास्तविक शुरुआत होगी।