November 7, 2025

आईआईटी रुड़की के शोधकर्ता ने नए अतिभारी तत्व आइसोटोप Sg-257 की खोज में दिया योगदान

(ब्योरो – दिलशाद खान।KNEWS18)

रुड़की, उत्तराखंड, 27 सितम्बर 2025।
परमाणु विज्ञान और आवर्त सारणी की सीमाओं को और गहराई से समझने की दिशा में एक ऐतिहासिक सफलता दर्ज हुई है। विश्व स्तर पर वैज्ञानिकों ने एक नए अतिभारी समस्थानिक सीबोर्गियम-257 (Sg-257) की खोज की है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि में भारत के आईआईटी रुड़की के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर एम. मैती का भी अहम योगदान रहा है।यह खोज जर्मनी के डार्मस्टाट स्थित जीएसआई हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर हेवी आयन रिसर्च में किए गए प्रयोगों का परिणाम है। शक्तिशाली त्वरक (accelerators) और अत्याधुनिक संसूचन तकनीकों की मदद से वैज्ञानिकों ने इस दुर्लभ आइसोटोप को पहली बार तैयार किया। चूंकि Sg-257 स्वाभाविक रूप से प्रकृति में नहीं पाया जाता, इसका सफल संश्लेषण परमाणु स्थिरता और “स्थिरता के द्वीप” (Island of Stability) की वैज्ञानिक खोज की दिशा में बड़ा कदम है।इस अध्ययन के निष्कर्ष प्रतिष्ठित शोध पत्रिका फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित हुए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह उपलब्धि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु संरचना और नाभिकीय बलों की समझ को नई दिशा देगी।आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर एम. मैती ने कहा, “यह खोज परमाणु भौतिकी में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि कुछ तत्व अपेक्षाकृत अधिक समय तक क्यों टिके रहते हैं और चरम परिस्थितियों में नाभिकीय बल कैसे व्यवहार करते हैं।”गौरतलब है कि Sg-257 जैसे अतिभारी तत्वों की अर्धायु (half-life) बेहद कम होती है, जो मिलीसेकंड से अधिक नहीं टिकती। हालांकि इनका व्यावहारिक उपयोग तत्काल संभव नहीं है, लेकिन हर खोज वैज्ञानिकों को नाभिकीय संरचना और स्थिरता के बारे में मूल्यवान जानकारी देती है। भविष्य में यह ज्ञान उन्नत सामग्री निर्माण, ऊर्जा अनुसंधान और चिकित्सा प्रौद्योगिकी में अनुप्रयोगों का आधार बन सकता है।आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने इस उपलब्धि पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “यह खोज मौलिक विज्ञान में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाती है। आईआईटी रुड़की का हिस्सा होना गर्व की बात है। यह हमारे उस विज़न को मजबूत करता है जिसमें हम न केवल समाज के लिए बल्कि अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनना चाहते हैं।”यह शोध एक अंतरराष्ट्रीय सहयोग का हिस्सा था जिसमें भारत के अलावा जर्मनी के जीएसआई हेल्महोल्ट्ज़, जोहान्स गुटेनबर्ग विश्वविद्यालय (जेजीयू मेंज़), जापान परमाणु ऊर्जा एजेंसी, फ़िनलैंड के जैवस्किला विश्वविद्यालय और कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिक शामिल थे। यह परियोजना FAIR चरण-0 सहयोग के अंतर्गत संचालित की गई थी।आईआईटी रुड़की, जो 1847 में स्थापित हुआ था, भारत के सबसे पुराने तकनीकी संस्थानों में से एक है और राष्ट्रीय महत्व का दर्जा रखता है। इंजीनियरिंग, विज्ञान, प्रबंधन, मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में इस संस्थान ने हमेशा उत्कृष्ट योगदान दिया है। इस खोज ने न केवल भारत की वैश्विक विज्ञान में स्थिति को मजबूत किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि भारतीय संस्थान मौलिक शोध और अत्याधुनिक विज्ञान में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

यह सफलता परमाणु भौतिकी में एक नया अध्याय खोलती है और वैश्विक विज्ञान जगत को यह संदेश देती है कि भारत आने वाले समय में न केवल प्रौद्योगिकी का उपयोगकर्ता रहेगा बल्कि वैज्ञानिक खोजों में भी अग्रणी भूमिका निभाएगा।

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