सात समुंदर पार भी विदेशियों पर छाया उत्तराखंड के पारंपरिक गहनों और गढ़वाली टोपी का जादू
(ब्योरो – दिलशाद खान।KNEWS18)
हरिद्वार में आयोजित देवभूमि रजत उत्सव में इस बार उत्तराखंड की लोकसंस्कृति और पारंपरिक कला का अनोखा संगम देखने को मिला। टिहरी गढ़वाल जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक से पहुंचे घड़ियाल देवता स्वयं सहायता समूह ने अपने स्टॉल में उत्तराखंड की पारंपरिक पहचान बन चुके गहनों और गढ़वाली टोपी की झलक पेश की, जिसने देश ही नहीं बल्कि विदेशों से आए आगंतुकों को भी आकर्षित किया।समूह की ओर से विशेष रूप से उत्तराखंडी दुल्हनों द्वारा पहने जाने वाले पारंपरिक गहनों जैसे कनफुल, मांग टीका, गुला बंद, पहाड़ी नथ और मंगलसूत्र का प्रदर्शन किया गया। साथ ही गढ़वाली और कुमाऊनी टोपी के साथ-साथ हैंडमेड वूलन और कॉटन की टोपियों ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन हस्तनिर्मित वस्त्रों और आभूषणों में पहाड़ी कला की बारीक कारीगरी और लोकसंस्कृति की गहरी छाप देखने को मिली।समूह के सदस्य विनोद असवाल ने बताया कि आज उत्तराखंड के ये पारंपरिक गहने और टोपी केवल प्रदेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ जैसे महानगरों के साथ-साथ अमेरिका, दुबई, चीन, सिंगापुर और इटली जैसे देशों तक इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। विदेशों में बसे भारतीयों के साथ-साथ विदेशी नागरिक भी उत्तराखंडी कला की सादगी और सुंदरता के दीवाने हो रहे हैं।उन्होंने बताया कि समूह की वार्षिक आय लगभग 15 से 20 लाख रुपये के बीच है, और वर्तमान में इस समूह से 15 से 20 महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो पूरी लगन और निपुणता से इन पारंपरिक उत्पादों को तैयार करती हैं। इन महिलाओं के लिए यह कार्य न केवल आर्थिक सशक्तिकरण का साधन है बल्कि अपने पर्वतीय विरासत को जीवित रखने का माध्यम भी है।विनोद असवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयासों से आज उत्तराखंड की संस्कृति, परिधान और हस्तशिल्प को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री धामी लगातार उत्तराखंड के उत्पादों को “एक जनपद एक उत्पाद” जैसी योजनाओं के तहत बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों को भी बड़ा लाभ हो रहा है।उन्होंने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का धन्यवाद करते हुए कहा कि सरकार द्वारा दिए जा रहे मंचों और प्रोत्साहन से आज पहाड़ी महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और “वोकल फॉर लोकल” अभियान को सच्चे अर्थों में आगे बढ़ा रही हैं। हरिद्वार के इस उत्सव में इन पारंपरिक गहनों और टोपियों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि उत्तराखंड की लोककला और हस्तकला का जादू अब सात समुंदर पार तक पहुंच चुका है।



